नारायण नाम उच्चारण से नरक के भागी अजामिल को मिला स्वर्ग - पं कृपाशंकर शुक्ल
बस्ती: शहर रोडवेज स्थित गड़गोड़िया मोहल्ले में श्री रामचन्द्र यादव जी के आवास पर भागवत कथा के तीसरे दिन प्रसिद्ध विद्वान कथावाचक पं कृपाशंकर शुक्ल जी ने श्रीमद् भागवत कथा में अजामिल की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि नारायण नाम उच्चारण से नरक के भागी अजामिल को मिला स्वर्ग। कथा के बीच में भजनों से ग्रामवासी भी साथ भजन करने लगे।
उन्होंने विस्तार से कथा का वर्णन करते हुए कहा कि अजामिल को दसवीं संतान के रूप में एक पुत्र हुआ। संतों के कहने पर अजामिल की स्त्री ने उसका नाम ‘नारायण’ रख दिया। नारायण सभी का प्रिय था।
अजामिल स्त्री और अपने पुत्र के मोह जाल में जकड़ा रहा। धर्म-कर्म तो कब का त्याग चुका था। कुछ समय बाद उसका अंत समय भी नजदीक आ गया।
भयानक यमदूत उसे लेने आए, भय से व्याकुल अजामिल ने नारायण! नारायण! पुकारा। भगवान का नाम सुनते ही विष्णु के पार्षद तत्काल वहां पहुंचे।
यमदूतों ने जिस रस्सी से अजामिल को बांधा था, पार्षदों ने उसे तोड़ डाला। यमदूतों के पूछने पर पार्षदों ने कहा कि नारायण नाम के प्रभाव से यह श्रीहरि का शरणागत है।
यमदूतों ने कहा कि यदि हमने अपना कार्य पूरा न किया तो धर्मराज का कोप झेलना पड़ेगा। इस व्यक्ति ने जीवनभर बुरे कर्म किए हैं। इसे घोर नर्क में स्थान मिला है।
पार्षदों ने कहा- किंतु जब तुम इसे पकड़ने आए तो यह नारायण नाम का स्मरण कर रहा था। प्रभु के आदेश पर हम प्रभुनाम जपने वालों की सहायता करते हैं।
यमदूतों ने बताया कि यह प्रभुनाम का स्मरण नहीं कर रहा था बल्कि हमारे भय से अपने पुत्र को पुकार रहा था। दोनों पक्षों में बहस चलती रही।
पार्षदों ने कहा- अंत समय में इसने नारायण नाम लिया है इसलिए इसे नरक नहीं ले जा सकते। यमदूत गए और उन्होंने धर्मराज को सारी बात बताई।
धर्मराज ने कहा- श्रीहरि के दूतों के दर्शन के कारण इसे एक वर्ष की जीवन स्वतः ही मिल गया। अब इस एक साल के कर्मों के आधार पर इसकी गति तय होगी।
अजामिल को एक साल मिल गया था। वह धर्मपरायण हो गया। प्रभु नाम का जाप करना और धर्म-कर्म यही उसका काम था। जीवन के शेष दिन उसने सत्संग में बिताए।
एक साल पूरे होने पर यमदूत फिर आए लेकिन इस बार उन्होंने उसे अपमानित करते हुए रस्सी में नहीं बांधा बल्कि सम्मान के साथ विदाकर स्वर्ग ले गए।
श्रीमद भागवत की यह कथा बताती है कि ईश्वर का मार्ग ही मोक्ष का मार्ग है। अंततः ईश्वर के ही पास जाना है। तय करना होगा कि यमदूत हमें रस्सियों में बांधकर घसीटते हुए ले जाएं या सम्मान के साथ प्रभु शरण प्राप्त हो। इस कथा में रामकरन यादव, चंद्रजीत, विनय शंकर, शुभम, विशाल, शुभम, अंकित, विभा सहित ग्रामवासी उपस्थित रहे।
Post a Comment