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परमात्मा को सुगमता से प्राप्ति कराने में गुरु ही सक्षम : अंकित दास
बस्ती अजमत अली:अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाने की क्षमता गुरु में ही होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम परम ब्रह्म होते हुए भी बिना गुरु के आदेश के कोई कार्य नहीं किया। इसीलिए संसार के लगभग सभी धर्मो ने गुरु के महत्व को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए उन्हें परम आदरणीय कहा है। शास्त्रों ने गुरु को परमात्मा से भी श्रेष्ठ माना है। गुरु और भगवान अगर एक साथ सामने आ जाएं, तो सर्वप्रथम गुरु के ही चरण छूने की बात कही गई है।
यह सदविचार अवध धाम से आये मानस मर्मज्ञ अंकित दास जी महाराज ने दानवबीर बाबा कुटी बखड़ौरा में महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीरामकथा के पांचवें दिन ब्यास पीठ से प्रवचन सत्र मे ब्यक्त किया।
गुरु की महिमा का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि हम परमात्मा की बातें भले ही करें, किंतु परमात्मा का हमें कोई पता नहीं, उसकी कोई अनुभूति नहीं। हमें यह भी पता नहीं कि परमात्मा एक जीवंत अनुभव है या कुछ और हम परमात्मा के संबंध में कितनी ही जानकारियां एकत्र कर लें बात बनने वाली नहीं है। गुरु परमात्मा के जीवंत अनुभव में उतरते हुए परमात्मा के साथ एकाकार हो चुका होता है और वही हमें सच्चा मार्ग दिखा सकते हैं।
जीवन मुक्ति के बाद भी चूंकि शरीर संबंधी ऋण शेष रहता है। इसलिए वह शरीर में टिका होता है। वह हमारी भाषा के सीमित शब्दों की मजबूरियों को समझता है। इसलिए अगर उसे हमारी सुपात्रता का यकीन हो जाए तो वह परमात्मा की ओर स्पष्ट संकेत कर सकता है। चूंकि वह हमारी ही दुनिया का व्यक्ति है, इसलिए हम उसके संकेत को समझ सकते हैं। जीवित गुरु को इसीलिए सर्वाधिक महत्व दिया गया है। परमात्मा करोड़ों सूर्य के समान है और हम अगर एक सूर्य से सीधे आंख मिलाना चाहें तो हमारी आंखें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। जाहिर है कि अनंत कोटि वाले परमात्मा को जान-समझ पाना सामान्य मानव के वश की बात नहीं है। इसके लिए हमें एक योग्य व्यक्ति अथवा परमात्मा का साक्षात्कार चुके ज्ञानी गुरू की आवश्यकता जरूरी है। अपने अनुभवों के आधार पर हम परमात्मा के साक्षात्कार की कल्पना भी नहीं कर सकते। परमात्मा अगर हमारे सामने आ खड़ा हो तो भी हम उसे पहचानेंगे कैसे? गुरु ही उससे हमारा परिचय करा सकता है इसलिए गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस संदर्भ में स्मरण रहे कि यहां गुरु से आशय समाज में मौजूद कुछ साधु वेश में भ्रष्ट, अहंकारी और पाखंडियों से हर्गिज नहीं है जो जनता को धर्म के नाम पर लूटते हैं। ऐसे लोगों से सदा सावधान रहते हुए हमें सद्गुरु की तलाश करनी चाहिए ताकि परमात्मा की खोज का पथ प्रशस्त हो सके।
श्री रामकथा में मुख्य रूप से में यज्ञाचार्य/आयोजक विजय दास, मुख्य यजमान सन्तराम मिस्त्री, राम बचन चौधरी, राम रेखा, राम फेर प्रजापति, प्रकाश, रामकुमार राजभर, राम जीत, अंगूर चौधरी, दिलीप चौधरी, राम जनक राजभर सहित बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण मौजूद रहे।
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