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संत व भगवान के प्रति मन मे संसय नही करना चाहिए : अंकित दास
बस्ती अजमत अली:श्रद्धा भाव के बिना प्रभु के श्री चरणों की प्राप्ति संभव नहीं है। सदगति की प्राप्ति करने हेतु कीर्तन करना परमावश्यक है। श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ ही मर्यादा संस्कृति, भक्ति व जनकल्याण का पोषक है। यह वह संबिधान है जिसके बल पर सनातन एवं भारतीय संस्कृति टिकी है।
यह सदबिचार मानस मर्मज्ञ अंकित दास जी महाराज ने महाशिवरात्रि पर्व पर रुद्र महायज्ञ केे दौरान दानवबीर बाबा कुटी बखड़ौरा मे चल रही सात दिवसीय संगीतमयी श्री रामकथा के तीसरे दिन दिन शिव पार्वती बिबाह के प्रसंग को बिस्तार देते हुए कहा कि पार्वती जी श्रद्धा की प्रतीक हैं तो शिवजी बिश्वास के प्रतीक हैं। अर्थात श्रद्धा और बिश्वास मनुष्य को राम कथा के माध्यम से ही संभव है। जीवन मे श्रद्धा बनती बिगड़ती है। लेकिन बिश्वास अजन्म होता है। संसार मे लोगों के साथ ब्यवहार समय के अनुकूल करना चाहिए। लेकिन मन का ब्यवहार भगवान से हमेशा के लिए करना चाहिए। और संत व भगवान के प्रति मन मे संसय नही करना चाहिए। क्यो कि भगवान के कथा पर संसय होने के कारण सती शरीर का त्याग करना पड़ा। वहीं सती पार्वती के रुप मे राजा हिमाचंल के यहां पुत्री के रुप मे अवतरित हुई ।और ऋषिराज नारद की प्रेरणा से पार्वती जी ने तपस्या कर ऋषियों की परीक्षा उत्तीर्ण हुई। तो बिवाह के उपरान्त शिव और पार्वती का मिलन हुआ।
श्री रामकथा में मुख्य रूप से में यज्ञाचार्य/आयोजक विजय दास, मुख्य यजमान सन्तराम मिस्त्री, राम बचन चौधरी, राम रेखा, राम फेर प्रजापति, प्रकाश, रामकुमार राजभर, राम जीत, अंगूर चौधरी, दिलीप चौधरी, राम जनक राजभर सहित बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण मौजूद रहे।
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