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कैलेंडर बदलें, संस्कृति नहीं” — भारतीय नववर्ष की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्ता पर डॉ. नवीन सिंह का संदेश




बस्ती। भारतीय संस्कृति और परंपराओं की वैज्ञानिकता को रेखांकित करते हुए अखंड एक्यूप्रेशर रिसर्च ट्रेनिंग एंड ट्रीटमेंट इंस्टीट्यूट, प्रयागराज के प्रोफेसर एवं योग, एक्यूप्रेशर व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. नवीन सिंह ने कहा है कि केवल तिथि परिवर्तन को नववर्ष मान लेना भारतीय जीवन-दर्शन के अनुरूप नहीं है। उन्होंने “कैलेंडर बदलें, संस्कृति नहीं” के संदेश के माध्यम से भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) को ही वास्तविक और प्रकृति-आधारित नववर्ष बताया।
डॉ. सिंह ने कहा कि 1 जनवरी के आगमन पर न तो ऋतु बदलती है, न मौसम, न फसल, न शैक्षणिक सत्र और न ही प्रकृति में कोई विशेष परिवर्तन दिखाई देता है। दिसंबर और जनवरी में जीवन-शैली, वस्त्र, खेती और वातावरण लगभग समान रहते हैं। इसके विपरीत, चैत्र मास में प्रकृति स्वयं नववर्ष का उत्सव मनाती प्रतीत होती है—पेड़ों पर नई कोपलें आती हैं, फूल खिलते हैं, हरियाली बढ़ती है और ऋतु परिवर्तन स्पष्ट रूप से अनुभव होता है।
उन्होंने बताया कि भारतीय नववर्ष के साथ विद्यालयों का नया सत्र, नया वित्तीय वर्ष, किसानों की नई फसल, तथा नया पंचांग आरंभ होता है। मार्च-अप्रैल में परिणाम घोषित होते हैं, नई कक्षाएं शुरू होती हैं, 31 मार्च को वित्तीय लेखा-जोखा बंद होकर नए बही-खाते खुलते हैं और किसान नई उपज के साथ नए वर्ष का स्वागत करता है। पंचांग के माध्यम से ही भारतीय समाज अपने पर्व, विवाह, व्रत और शुभ मुहूर्त निर्धारित करता है, जिससे इसका सामाजिक महत्व और बढ़ जाता है।
पर्व मनाने की परंपरा पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि 31 दिसंबर की रात होने वाले अव्यवस्थित आयोजनों के विपरीत भारतीय नववर्ष नवरात्र से प्रारंभ होता है, जिसमें व्रत, साधना, पूजा और सात्विकता का वातावरण बनता है। यह परंपरा समाज में संयम, शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का विशेष महत्व है। इसी दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत की शुरुआत मानी जाती है। इसके साथ ही ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना, नवरात्र का आरंभ और लोकआस्था से जुड़े कई प्रसंग इस तिथि से जुड़े हैं।
डॉ. नवीन सिंह ने समाज से आह्वान किया कि भारतीय कालगणना विज्ञान-आधारित है, जो सूर्य, चंद्र, ऋतु, नक्षत्र, कृषि और मानव जीवन के प्राकृतिक चक्रों से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हम केवल विदेशी तिथियों का अनुसरण करने के बजाय अपनी संस्कृति और वैज्ञानिक परंपराओं को समझें, अपनाएं और आगे बढ़ाएं।

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