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Ballia News: विश्वविधालय बचाओ देश बचाओ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन

विश्वविधालय बचाओ देश बचाओ  राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के तहत आगसा, आईपीएस ने प्रदर्शन कर जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति जी को ज्ञापन प्रेषित किया गया। 



बलिया। विश्वविधालय बचाओ, देश बचाओ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के तहत ऑल गोंडवाना स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आगसा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज क़ुमार शाह व इंडियन पीपुल्स सर्विसेज (आईपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद गोंडवाना के संयुक्त नेतृत्व में जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति जी को ज्ञापन प्रेषित किया गया। इस अवसर पर आगसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज क़ुमार शाह व आईपीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद गोंडवाना ने संयुक्त रुप से अपने सम्म्बोधन में कहा कि  विश्वविद्यालय किसी भी देश और समाज की बुनियाद होते हैं। विश्वविद्यालयों को किसी भी एक विचारधारा, सरकार, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र का न होकर सभी का होना होता है। विश्वविद्यालय का ‘विश्व’ इन्हें वैश्विक ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, विमर्श, संवाद का केंद्र बनाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना के मूल न्याय, समता, बंधुता के मूल्यों पर ही उच्च शिक्षा का वजूद होना चाहिए। मगर मौजूदा दौर में उच्च शिक्षा के केंद्र इन विश्वविद्यालयों पर कई तरह के ख़तरे आन पड़े हैं। देश के आम नागरिक इन ख़तरों की तरफ़ महामहिम आपका ध्यान आकृष्ट कराते हुए माँग करते हैं कि देश भर के विश्वविद्यालयों पर एक विचारधारा को थोपा जा रहा है, जिससे उच्च शिक्षा का स्वायत्त, निष्पक्ष, तटस्थ, समावेशी व संविधान पर आधारित चरित्र नष्ट हो रहा है! विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया बेहद भेदभावकारी, अपारदर्शी और भ्रष्टाचारी है जिसके चलते वास्तविक प्रतिभा का हनन हो रहा। कम प्रतिभावान लोगों के हाथों विद्यार्थियों का भविष्य संकट में है। बिहार, यूपी में नियुक्ति प्रक्रिया ज़्यादा पारदर्शी व न्यायप्रिय है। दिल्ली विश्वाविद्यालय में योग्यता को परखने की पात्रता अर्थहीन है। इसलिए नियुक्ति प्रक्रिया तत्काल बदली जाए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के भीतर हर स्तर पर जातिगत, लैंगिक और अन्य कई क़िस्म के शोषण व भेदभाव बदस्तूर जारी हैं, जिसके चलते देश भर के विश्वविद्यालयों से वंचित शोषित जमात के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्रोफ़ेसरों के साथ अनवरत अन्याय हो रहा है। सरकार व एक विचारधारा विशेष के प्रभाव में पाठ्यक्रम बदले जा रहे हैं, पीएचडी एडमिशन तक में घोर धांधली की जा रही है, विद्यार्थियों की सीटों व फ़ेलोशिप में कटौती हो रही, फ़ीस बेतहाशा बढ़ाई जा रही है, उच्च शिक्षा का क्रमिक निजीकरण किया जा रहा है। अभी हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय से तक़रीबन एक हज़ार से ज़्यादा बेहद प्रतिभावान, अनुभवी शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया है। जो बेहद आपत्तिजनक है। शिक्षकों को ठेके पर रखकर विश्वगुरु बनने का ख़्वाब देखा जा रहा है, जो बेहद ख़तरनाक है। छात्र शिक्षक अनुपात के वैश्विक मानक के तहत सभी पदों पर स्थाई नियुक्ति हो। भारत के सभी नागरिक उक्त तमाम विषयों को लेकर बेहद चिंतित हैं और इसे लेकर आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि तत्काल आप कुछ ठोस क़दम उठाएँ और उच्च शिक्षा को बचाएँ। महामहिम सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी हैं और भारत की प्रथम नागरिक भी। भारत के हम आम नागरिक आपसे गुज़ारिश करते हैं कि यदि उच्च शिक्षा किसी सरकार या किसी एक विचारधारा की गिरफ़्त में चली जाएँगी तो ये पूरे समाज और देश का नुक़सान होगा। इस लिये महामहिम राष्ट्रपति जी व समस्त केंद्रीय विश्वविद्यालयों के  कुलाधिपति जी को देश की नींव  शिक्षा जैसे गंभीर विषय पर संवैधानिक कदम उठाने की अपील है! कार्याक्रम में प्रमुख रुप से लल्लन जी गोंड, आईपीएस के जिलाध्यक्ष सुरेश शाह, संजय गोंड, सूरज चौरसिया, एड. अमित कुमार, सतीश चन्द्र महाविधालय छात्रसंघ के पूर्व पुस्तकालय मंत्री जितेंद्र कुमार जीतू, रामाधार यादव, अलीहुसैन अंसारी, बच्चालाल गोंड, केदार शाह, सोनू कुमार, अभिषेक कुमार, अरविंद कुमार रहे!
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