ईद की नमाज से पहले फितरा व जकात फर्ज--- हाफिज अतहर हुसैन "शाही"
वकील अहमद सिद्दीकी
बनकटी, बस्ती...... रमजान में रोजा नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात और फितरा अदा करने का भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है ।
हाफिज अतहर हुसैन "शाही" बताते हैं कि इस्लाम के पांच स्तंभों (फर्ज) में से एक है,रमजान महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमन्द मुसलमान पर फर्ज होता है ।उन्होंने बताया कि अगर किसी परिवार में पांच सदस्य हैं,और वह सब नौकरी या किसी भी जरिये से पैसे की कमाई करते हैं । तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज माना जाता है । मसलन, अगर कोई बेटा या बेटी भी नौकरी या कारोबार के जरिए पैसा कमाता है तो सिर्फ उनके मां-बाप अपनी कमाई पर जकात देखकर नहीं बच सकते हैं । बल्कि कमाने वाले बेटे या बेटी पर भी जकात देना फर्ज होता है । जिस मुसलमान के पास भी इतना पैसा या संपत्ति हो कि वह उनके अपने खर्चे पूरे हो रहे हो और वह किसी की मदद करने की स्थिति में है तो वह जकात (दान) करने का हकदार बन जाता है । रमजान में इस दान को दो रूप में दिया जाता है । फितरा और जकात।
इंसान की पूरी साल में जो बचत होती है पूरे साल की बचत का उसका 2.5% हिस्सा किसी गरीब अथवा जरूरतमंद को देखकर उसकी मदद करने को जकात कहते हैं। यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद ₹100 बचते हैं । तो उसमें से 2.50 रूपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है ।
यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है । लेकिन मुसलमान रमजान महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं । और उनमें से 2.50% जकात (दान) करते हैं । महिलाओं या पुरुषों के पास अगर ज्वैलरी के रूप में 7:30 तोला सोना, 52.30 तोला चांदी या कोई संपत्ति है । तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है ।
फितरा में 2.47 किलोग्राम गेहूं या उसका दाम जिस दाम में आप अपने लिए गेहूं खरीद कर खाने में इस्तेमाल करते हैं । गरीब व जरूरतमंद लोगों की ईद को खुशगवार बनाने के लिए मुसलमान को सदक-ए-फित्र देने का हुक्म दिया गया है । उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जो जकात के हकदार हैं यानी गरीब, मजलूम, बेवा, और मिस्कीन है । ईद की नमाज पढ़ने से पहले अनाज या पैसे की शक्ल में इसे अदा कर दिया जाता है ।
Post a Comment