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जिस क्रांतिकारी जमीन को अंग्रेजों ने बना दिया था ‘गैरचिरागी’ वहां मशाल जलाकर क्रांतिकारियों को किया गया नमन



कुदरहा: रोशनी के त्योहार दीपावली पर हर जगह रोशन हो रही है, वहीं चंबल संग्रहालय, पंचनद की ओर से महुआ डाबर क्रांति स्मारक पर भी मशाल जलाकर कर रोशन किया गया और महुआ डाबर एक्शन के रणबांकुरों को याद किया गया। चंबल संग्रहालय, पंचनद द्वारा क्रांति स्थल पर ‘जश्न-ए-चिराग’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान नई पीढ़ी अपने लड़ाका पुरखों के क्रांतिकारी इतिहास से रूबरू होने का मौका मिला।

चंबल संग्रहालय पंचनद के महानिदेशक और क्रांतिकारी वंशज डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि महुआ डाबर एक्शन स्वतंत्रता संग्राम के साहस, त्याग और बलिदान का ऐसा चमकता स्वर्णिम दस्तावेज है जिसका कोई सानी नहीं है। क्रांति की ज्वाला जलाने वाले स्थानीय क्रांतिवीरों ने 10 जून 1857 को अंग्रेजी सेना के लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थॉमस, लेफ्टिनेंट इंग्लिश, लेफ्टिनेंट रिची, सार्जेन्ट एडवर्ड, लेफ्टिनेंट कॉकल जैस कुख्यात अफसरों की घेराबंदी करके मौत के घाट उतार दिया। 

सार्जेन्ट बुशर घायल अवस्था में किसी तरह से अपनी जान बचाकर भाग निकला और अंग्रेजी हुकूमत के उच्च अधिकारियों को सारी घटना की सूचना दी। विश्व इतिहास में महुआ डाबर एक्शन से ब्रिटिश सरकार की चूल्हे हिल गई। छह सैन्य अफसरों की मौत से बौखलाई अंग्रेजी सेना ने 20 जून,1857 को मजिस्ट्रेट पेपे विलियम्स ने घुड़सवार फौजियों की मदद से पांच हजार की आबादी वाले महुआ डाबर गांव को घेरकर जलाकर राख कर दिया। पूरे कस्बे को तहस नहस करने के बाद 'गैरचिरागी' घोषित कर दिया। महुआ डाबर से लेकर वर्डपुर तक पेपे विलियम्स जैसे हैवानों से इंकलाबियों के साझा संघर्ष की शानदार विरासत दर्ज है। महुआ डाबर केस कार्यवाही चंबल संग्रहालय में आज भी संरक्षित है।

महुआ डाबर क्रांति स्थल पर जश्न-ए-चिराग कार्यक्रम में मो.नासिर खान, अमित कुमार (डी सी), मो .असलम, दिलशाद अहमद खान, बब्लू, अजहर खान,धर्मेंद्र कुमार, सादिक खान, फैजान खान, रमजान, शमशेर प्रधान , अतीक अहमद आदि उपस्थित रहे।



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