कवि सम्मेलन- ‘मेरे वजूद पर खुद ही बहुत मुकदमें हैं’
अजय कुमार श्रीवास्तव, बस्ती
होली मिलन, सम्मान समारोह में रचनाधर्मिता पर विमर्श
बस्ती । राष्ट्रीय चेतना साहित्य एवं संस्कृति संस्थान द्वारा अजय कुमार श्रीवास्तव ‘अश्क’ के संयोजन में प्रेस क्लब सभागार में कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ होली मिलन समारोह का आयोजन किया गया।
रूचि दूबे द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ कवि सम्मेलन में ज्ञानेन्द्र द्विवेदी की रचना ‘ ऐ अब्र हमें तू बार-बार सैलाब की धमकी देता है, हम तो दरिया की छाती पर तरबूज की खेती करते हैं, को श्रोताओं ने सराहा। छंद के श्रेष्ठ कवि सतीश आर्य की रचना ‘ जब -जब सीता सी सती को त्यागते हैं राम, तब तब देती है पनाह एक झोपड़ी’ ने कवि सम्मेलन को नई ऊंचाई दी। प्रदीप चन्द्र पाण्डेय की रचना- तिथियां बदली, तथागत बदले, तेवर बदल गये’ बुनियादी संघर्षो वाले जाने किधर गये’ ने सोचने पर विवश किया। विनोद उपाध्याय ‘हर्षित’ ने बस्ती की गाथा सुनाकर वाहवाही लूटी। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि डा. राम कृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कुछ यूं कहा ‘ नहीं पड़ेगा आंगने अगर पिया का पांव, ऐ फागुन तुझकों नहीं आने दूंगी गांव’ को प्रस्तुत कर वातावरण को सरस बना दिया। शायर सहाब मजरूह के कलाम ‘घर मेरा चांदनी मंे नहाया न फिर कभी, को लोगों ने काफी पसन्द किया। रूचि द्विवेदी की कविता ‘ भला उस बेवफा की पैरवी करूं कैसे, मेरे वजूद पर खुद ही बहुत मुकदमें हैं’ को श्रोताओं ने डूबकर सुना।
बाल संरक्षण अधिकारी वीना सिंह, अंकुर वर्मा, त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने साहित्यिक सरोकारों पर प्रकाश डाला।
इसके पूर्व अरबन कोआपरेटिव बैंक के सचिव महेन्द्र सिंह ने कवि सम्मेलनों के निरन्तरता पर जोर दिया। राष्ट्रीय चेतना साहित्य एवं संस्कृति संस्थान द्वारा बाल संरक्षण अधिकारी वीना सिंह को उनके योगदान के लिये स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र, प्रमाण-पत्र भेंटकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से डा. वी.के. वर्मा, पंकज शास्त्री, विजय श्रीवास्तव, अनुष्का चौरसिया, सागर गोरखपुरी, भावुक आदि ने काव्य पाठ किया। इस अवसर पर बेमग खैर एवं अन्य स्कूलों की छात्राओं ने स्वागत गीत, एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। आस्था दूबे के कत्थक नृत्य ने मन मोह लिया। अपने पैरों की थाप और घुंघरू की झंकार के नृत्य पर लोगों ने खड़े होकर बजाया ताली बजाकर आस्था को प्रोत्साहित कर आशीर्वाद दिया। बचपन में ही घर से शुरू की कत्थक नृत्य के जरिए लोगों को कर रही आकर्षित। होली मिलन समारोह पर आयोजित कविसम्मेलन और सांस्कृतिक कार्यक्रम में जब आस्था ने अपना नृत्य प्रस्तुत किया तो उपस्थित लोग खड़े होकर नृत्य से आकर्षित होकर तालियां बजाकर आस्था का हौसला अफजाई किया। चिलमा बाजार निवासी आस्था दूबे ले बताया कि छह वर्ष की उम्र में ही उसके मन में कथक नृत्य के जरिए अपनी पहचान बनाने का ख्याल मन में आया और तभी से वह पूरे मनोयोग से कत्थक नृत्य सीखने में जुट गई। वह अब तक कोलकता डांस का तड़का, लखनऊ सेमीफाइनल, गोरखपुर सेमीफाइनल औ फैजाबाद एडीशन में प्रतिभाग कर चुकी हैं। वे कहती है कि मेरा यही संकल्प है कि देश के बड़े से बड़े मंचों पर कत्थक नृत्य की प्रस्तुतीकरण से अपनी अपने जनपद का नाम रोशन करूं।
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