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काकोरी शताब्दी विशेषांक' का महुआ डाबर संग्रहालय में भव्य विमोचन



बस्ती: स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्वर्णिम और साहसिक घटना के रूप में दर्ज ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ‘काकोरी शताब्दी विशेषांक’ का विमोचन महुआ डाबर संग्रहालय में एक गरिमामय समारोह के बीच किया गया। यह विशेषांक जनमानस प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित और वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. शाह आलम राना द्वारा संपादित है। यह न केवल एक पत्रिका का अंक है, बल्कि एक ऐतिहासिक, शोधपूर्ण और भावनात्मक स्मृति-ग्रंथ है, जो काकोरी घटना के 100 वर्षों की स्मृतियों, दस्तावेज़ों और अनुभवों को समेटे हुए है।


डॉ. राना ने विमोचन के अवसर पर कहा कि आज जब स्वतंत्रता संग्राम की कई घटनाएँ नई पीढ़ी की स्मृति से धुंधली हो रही हैं, तब ऐसे दस्तावेज़ अतीत और वर्तमान के बीच पुल का कार्य करते हैं। काकोरी की इस ऐतिहासिक घटना को सिर्फ एक डकैती के रूप में नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध क्रांतिकारी कदम के रूप में समझना आवश्यक है, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाना था।


विशेषांक की शुरुआत "काकोरी केस: एक परिचय" शीर्षक से होती है, जिसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की पृष्ठभूमि और गठन की कहानी विस्तार से दी गई है। इसके साथ ही "काकोरी ट्रेन एक्शन की विशेषताएँ" आलेख में इस घटना की योजना, क्रियान्वयन और उसके तत्कालीन राजनीतिक प्रभाव को रेखांकित किया गया है। इन आलेखों में क्रांतिकारियों की निष्ठा, साहस और संगठन क्षमता के उदाहरण पाठकों को स्पष्ट दिखाई देते हैं।


"काकोरी का मुकदमा और सजाएँ" खंड विशेषांक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें मुकदमे की कानूनी प्रक्रिया, न्यायालयीन फैसले और दोषियों की सूची बेहद व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत की गई है। इसमें अदालत की कार्यवाही, गवाहियों और अंग्रेज सरकार के रुख को समझने का अवसर मिलता है। यह खंड पाठकों को यह भी बताता है कि किस प्रकार अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों को कठोर दंड देकर राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने का प्रयास किया।


विशेषांक का संस्मरण खंड पाठकों के दिल को छूने वाला है। इसमें सुरेशचंद्र भट्टाचार्या, रामकृष्ण खत्री, शचीन्द्रनाथ सान्याल और चंद्रशेखर आज़ाद के व्यक्तिगत अनुभव शामिल हैं। इन संस्मरणों में जेल की यातनाएँ, गुप्त बैठकों के किस्से, और साथियों के प्रति भावनात्मक लगाव के प्रसंग इसे अत्यंत जीवंत बना देते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी जैसे अमर बलिदानियों पर आधारित आलेख न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करते हैं, बल्कि इन वीरों के व्यक्तित्व और विचारों की गहराई को भी सामने लाते हैं।


विशेषांक में दस्तावेज़ खंड इसकी विशेषता है, जिसमें सरदार भगत सिंह की काकोरी पर टिप्पणियाँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त काकोरी के क्रांतिवीरों द्वारा लिखे गए पत्र, न्यायालयीन अभिलेख, सरकारी नोटिस और उस दौर की दुर्लभ तस्वीरें भी सम्मिलित हैं। ये दस्तावेज़ न केवल ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में काम आते हैं, बल्कि पाठकों को सीधे उस समय में ले जाकर खड़ा कर देते हैं, जब यह संघर्ष चल रहा था।


पुस्तक समीक्षा खंड में दो महत्वपूर्ण कृतियों का मूल्यांकन है, जो युवा पीढ़ी के लिए नए दृष्टिकोण और संदर्भ खोलते हैं। समीक्षाओं में यह स्पष्ट किया गया है कि इतिहास की इन घटनाओं से वर्तमान समाज और राजनीति क्या सीख ले सकता है।


संपादकीय दृष्टि से डॉ. शाह आलम राना ने विशेषांक की भाषा को सरल, स्पष्ट और भावनात्मक रखा है, ताकि यह केवल इतिहासकारों या शोधार्थियों तक सीमित न रहे, बल्कि आम पाठक भी इसे आसानी से पढ़ और समझ सके। लेखन में जिस तरह से तथ्यों और भावनाओं का संतुलन साधा गया है, वह इसे एक जीवंत दस्तावेज़ बना देता है।


विशेषांक के विमोचन समारोह में उपस्थित इतिहासकारों, साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे स्वतंत्रता संग्राम के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत बताया। वक्ताओं ने कहा कि जब इतिहास को रोचक और प्रमाणिक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है, तो वह नई पीढ़ी में प्रेरणा का संचार करता है।


काकोरी की 100वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित यह विशेषांक केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह क्रांतिकारियों की अमर गाथा को वर्तमान पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास है। इसमें इतिहास, संस्मरण, साहित्य और दस्तावेज़ों का जो संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया गया है, वह इसे अन्य प्रकाशनों से अलग और खास बनाता है।


इस अंक को पढ़ते हुए पाठक न केवल काकोरी केस के घटनाक्रम से परिचित होते हैं, बल्कि उन्हें यह भी अहसास होता है कि स्वतंत्रता संग्राम के हर कदम के पीछे कितनी गहरी रणनीति, बलिदान और निष्ठा जुड़ी थी। जनमानस का ‘काकोरी शताब्दी विशेषांक’ आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो स्वतंत्रता की इस ऐतिहासिक घटना के महत्व को पुनः रेखांकित करता है और यह संदेश देता है कि आज़ादी केवल एक दिन की उपलब्धि नहीं, बल्कि सतत संघर्ष का परिणाम है।


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