Ballia News: अनेक मान्यताओं से भरा है त्रेतायुग में स्थापित शांकरी भवानी का दरबार
दुर्गा सप्तशती में वर्णित इस सच्चे दरबार मे भर जाती है सबकी झोली, राजा सुरथ से जुड़ी है शंकरपुर स्थित मां भवानी दरबार। मंदिर समिति के प्रबंधक विजय प्रताप तिवारी बताते हैं कि यह मंदिर त्रेता युग का है. इसकी कहानी राजा सूरथ से जुड़ी है. दुर्गा सप्तशती में भी यह दरबार वर्णित है. यहां भक्तों की सभी मुरादे पूरी होती हैं।
नवरात्रि के पावन अवसर पर जहां देखो वहां माता की जय जयकार हो रही है. हर कोई इस पावन अवसर पर मां के भक्ति में डूब चुका है. इस अवसर पर हम आपको उस सच्चे दरबार की तरफ ले चलते हैं. जिससे लाखों लोगों की आस्था जुडी हुई है. इस भवानी का महिमा अपरंपार है।
मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्तों की मुरादे पूरी होती है. आज तक जो इस सच्चे मन से दरबार में आया वह कभी खाली नहीं गया। जी हां यही है शांकरी भवानी जिनके नाम पर इस क्षेत्र का ही नाम शंकरपूर पड़ गया। मान्यता है कि मन्दिर के समीप स्थित सुरहा ताल में अपने जीवन का अधिकतर समय राजा सूरथ ने व्यतीत किया. उसी के दौरान उन्होंने इसके आसपास पांच मंदिरों का निर्माण कराया. यह मां भवानी आप रूपी प्रकट होकर राजा सूरत को दर्शन दी थी। आज से लगभग 500 वर्ष पहले यहां के पूर्वजों को यह काफी सीमित क्षेत्र में एक छोटा सा मंदिर के रूप में मिला. जब पूजा याचना होने के साथ ही लोगों की मनोकामना पूरी होती गई तो उसी के साथ मंदिर भव्य रूप में परिवर्तित हो गया. दुर्गा सप्तशती में वर्णित है सच्चा दरबार त्रेतायुग में रघुवंशी राजा सूरथ के द्वारा निर्माणित इस शांकरी भवानी का वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी इस प्रकार, शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत् कर्णमूले तु शांकरी॥ से वर्णित है. इसी क्षेत्र के पास एक ताल भी है. जिसको सुरहा ताल के नाम से जाना जाता हैं. यहीं पर राजा सूरत को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी. उसी के दौरान ही राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया।
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