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भागवत कथा बताती है क्या सही है और क्या गलत


 

बस्ती। पंडित आचार्य प्रशांत दुबे जी के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत कथा का वाचन हो रहा है। लालगंज कस्बे में चल रहे कथा के चौथे दिन ध्रुव चरित्र, नरसिंह अवतार और गजेंद्र मोक्ष का वर्णन किया गया। कथा के बीच-बीच में आचार्य अमित मिश्रा और अंकित शास्त्री द्वारा सुनाए गए भजनों पर श्रद्धालु झूम उठें। कथा वाचक आचार्य प्रशांत जी ने बताया कि सतयुग के दौरान अवधपुरी में राजा उत्तानपद राज किया करते थे। उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति था और उनके कोई संतान नहीं थी। देवर्षि नारद रानी को बताते हैं कि यदि तुम दूसरी शादी करवाओगी तो संतान प्राप्त होगी। रानी अपनी छोटी बहन सुरुचि की शादी राजा से करवा देती है। कुछ समय बाद सुरुचि को एक संतान की उत्पत्ति होती है। जिसका नाम उत्तम रखा। उसके कुछ दिनों के बाद बड़ी रानी भी एक बालक ध्रुव को जन्म देती है। 5 वर्ष बाद जब राजा उत्तम का जन्म दिन मना रहे थे तो बालक ध्रुव भी बच्चों के साथ खेलता हुआ उनकी गोद में बैठ गया, जिस पर सुरुचि उठा देती है और उसे कहती है कि यदि अपने पिता की गोद में बैठना है तो अगले जन्म तक इंतजार कर। बालक ध्रुव यह बात चुभ जाती है और वह वन में जाकर कठिन तपस्या करने लगते हैं। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उन्हें दर्शन देते हैं और उन्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देते हैं। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए और प्रभु की भक्ति में कोई विघ्न नहीं डालना चाहिए। प्रह्लाद चरित्र का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने बताया कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानते थे। पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति करते देख उन्होंने उसे ही जान से मारने की ठान ली। प्रभु पर सच्ची निष्ठा और आस्था की वजह से हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाए। बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। गजेंद्र मोक्ष की कथा में बताया कि निर्बल के बल राम होते है जैसे हाथी गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ नदी में जलक्रीड़ा कर रहा था, तभी एक मगरमच्छ गजेंद्र का पैर पकड़ लेता है। मगरमच्छ गजेंद्र को गहरे पानी मे खींचने लगता है, तो वह पत्नियों को सहायता के लिए पुकारता है। सब उसे डूबता छोड़कर चले जाते हैं। गजेंद्र को समझ आता है कि सारे रिश्ते और प्रेम स्वार्थ से जुड़े हैं। दुनिया का प्रेम धोखा है, दिखावा है। गजेंद्र भगवान से प्राण रक्षा की प्रार्थना करता है तब हरि कृपा से गजेंद्र मुक्त होता है। ईश्वर हमेशा भक्त के प्रेम का मान रखते हैं। हर मुसीबत में ईश्वर ही सच्चा सहारा है। इसीलिए कहाँ गया है निर्बल के बल राम।

कथा में आयोजक अमृत कुमार वर्मा, सियाराम वर्मा, ओंकार नाथ, राजू वर्मा, राजेन्द्र प्रसाद, गणेश वर्मा, आयुष सोनी, श्रेया निधि, विनोद सोनी, धर्मेन्द्र कसौधन, ज्ञानचन्द्र अग्रहरी, भोला, सचिन, पिन्टू आदि मौजूद रहे।

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