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Ballia News: प्रकाश उत्सव में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने IRCS को किया सम्मानित
सवा लाख से एक लड़ाऊं,चिड़ियों सों मैं बाज बड़ाऊं तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊं।आज सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी का 357वां प्रकाश पर्व है. वह सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। इनका जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था. तभी से हर साल इस तिथि पर इनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन गुरुद्वारों में भव्य आयोजन कराए जाते हैं। अरदास लगती है और विशाल लंगर लगाए जाते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना साहिब (बिहार) में हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना सन् 1699 में की थी. यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने ही साहेब श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों को वर्तमान गुरु के रूप में मानने का आदेश दिया था. उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए बिता दिया।
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों से टकराए थे. सिखों को केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था इन्हें 'पांच ककार' कहा जाता है। हर सिख के लिए इन्हें धारण करना अनिवार्य है। गुरु गोबिंद सिंह विद्वानों के
संरक्षक थे. इसलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। उनके दरबार में हमेशा 52
कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी। गुरु गोबिंद सिंह स्वयं भी एक लेखक थे, अपने जीवन काल में उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की थी। इनमें चंडी दी वार, जाप साहिब, खालसा महिमा, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक और जफरनामा जैसे ग्रंथ
शामिल हैं। इसी क्रम में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बलिया द्वारा भी गुरु गोविंद सिंह का 357 वां प्रकाश उत्सव मनाया गया, जिसमें नगर में प्रभात फेरी निकाली गई, श्रीराम मंदिर अयोध्या की झांकी एवं विभिन्न तरह के कार्यक्रम किए गए, तत्पश्चात गुरुद्वारे में वृहद लंगर की व्यवस्था की गई। इस अवसर पर सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया, जिसके क्रम में इण्डियन रेड क्रॉस सोसायटी बलिया से शैलेन्द्र कुमार पाण्डेय, विजय कुमार शर्मा, सरदार सुरेन्द्र सिंह खालसा को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान सरदार रंजीत सिंह द्वारा सम्मानित किया गया। इस दौरान सरदार जितेन्द्र सिंह, श्याम बाबू रौनियार आदि सम्मानित सदस्य उपस्थित रहे, संचालन सरदार अमृत पाल सिंह ने किया।
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